तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

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भारत रत्न सचिन तेंदुलकर

क्रिकेट के भगवान की अनसुनी कहानियां


महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और मशहूर वैज्ञानिक प्रोफेसर सीएनआर राव को आज एक कार्यक्रम में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। पिछले साल 16 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने वाले मास्टर बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर इस सम्मान से नवाजे जाने वाले पहले खिलाड़ी हैं। उन्हें यहां राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में होने वाले कार्यक्रम में यह सम्मान दिया गया।

24 साल के रिकार्डों से भरे करियर में पूर्व भारतीय कप्तान तेंदुलकर को मुंबई में वेस्टइंडीज के खिलाफ उनके 200वें विदाई मैच के बाद इस प्रतिष्ठित सम्मान के लिए चुना गया। एक अधिकारिक बयान के अनुसार तेंदुलकर विश्व खेलों में देश के सच्चे एम्बेसडर हैं और क्रिकेट में उनकी उपलब्धियां अद्भुत हैं, उनके द्वारा हासिल किए रिकार्ड की बराबरी नहीं की जा सकती है और उनकी खेल भावना शानदार है। इसके अनुसार, उन्हें इतने सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया जाना खिलाड़ी के तौर पर उनकी अद्भुत प्रतिभा का साक्ष्य है।

पैंतीस के पार सबसे अधिक चला सचिन का बल्ला

किसी भी क्रिकेटर का 35 साल की उम्र पार करने के बाद अवसान का दौर शुरू हो जाता है, लेकिन सचिन तेंदुलकर इस मामले भी अपवाद हैं, क्योंकि इस स्टार बल्लेबाज ने अपने टेस्ट करियर में सर्वाधिक रन पिछले पांच वर्षों में बनाए, जबकि इस बीच उनके संन्यास को लेकर भी चर्चाएं होती रही। सोलह साल की उम्र में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण करने वाले तेंदुलकर के करियर को यदि उनकी उम्र के आधार पर प्रत्येक पांच साल के पड़ाव में बांट दिया जाए तो फिर पता चलता है कि 35 साल पूरे करने के बाद उन्होंने सर्वाधिक टेस्ट खेले और तब भी ढेरों रन बनाए।

तेंदुलकर ने 35 बसंत पूरे करने के बाद 51 टेस्ट मैच खेले जिनमें उन्होंने 50.06 की औसत से 4055 रन बनाए। इसमें 12 शतक और 18 अर्धशतक भी दर्ज हैं। आंकड़ों की इस कहानी से पता चलता है कि तेंदुलकर दुनिया के उन चंद खिलाड़ियों में शामिल रहे हैं जिन पर उम्र का ज्यादा असर नहीं दिखा। सबसे अहम बात यह रही कि इस दौरान तेंदुलकर कभी शून्य पर आउट नहीं हुए। वेस्टइंडीज के खिलाफ नवंबर में होने वाले दो टेस्ट मैचों के बाद टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहने वाले तेंदुलकर की उम्र को आधार पर मानकर उनके करियर पर गौर किया जाए, तो उनके लिए 31 से 35 साल के बीच का दौर सबसे कठिन रहा। यह वही दौर था जब वह टेनिस एल्बो से जूझ रहे थे। इस बीच दो साल तक ग्रेग चैपल भी भारतीय टीम के कोच रहे।

तेंदुलकर ने इन पांच वर्षों में 42 टेस्ट मैच खेले और 2971 रन बनाये जिसमें आठ शतक शामिल हैं। उनका औसत 49.51 रहा। तेंदुलकर ने इस दौरान भले ही बांग्लादेश के खिलाफ नाबाद 248 और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सिडनी में नाबाद 241 रन की दो बड़ी पारियां खेली लेकिन घरेलू पिचों पर उनका बल्ला कुंद पड़ा रहा। तेंदुलकर ने इन पांच वर्षों में घरेलू सरजमीं पर 18 टेस्ट मैच खेले लेकिन इनमें वह 31.92 की औसत से ही रन बना पाये जिसमें एकमात्र शतकीय पारी (109 रन) शामिल हैं। इस दौरान तेंदुलकर ने 24 टेस्ट मैच विदेशी सरजमीं पर खेले और उनमें सात शतकों की मदद से 2109 रन बनाए।


यह कहा जा सकता है बांग्लादेश के खिलाफ चार टेस्ट मैचों में 179.33 की औसत से 538 रन बनाने के कारण इन पांच वर्षों में विदेशी दौरों में तेंदुलकर का आंकड़ा आकर्षक बना। यही वह दौर था जबकि तेंदुलकर ने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ 11 टेस्ट मैच खेल और उनमें 50.92 की औसत से 662 रन बनाए। तेंदुलकर ने टेस्ट क्रिकेट में अपना सर्वश्रेष्ठ औसत 21 से 25 साल और 26 से 30 साल की उम्र के बीच में निकाला। रिकॉर्ड के बादशाह को 26 साल की उम्र के बाद ही पहली बार टेस्ट खेलने वाले सभी नौ देशों के खिलाफ मैच खेलने का मौका मिला। इस बीच उन्होंने 44 टेस्ट मैचों में 60.84 की औसत और 15 शतक की मदद से 4259 रन बनाए।

यह वही दौर था जबकि उन्होंने घरेलू सरजमीं पर खूब रन बटोरे। तेंदुलकर ने इन पांच वर्षों में 21 टेस्ट मैच भारत में खेले और 69.51 की औसत से 2294 रन बनाए। यह अलग बात है कि इस दौरान उन्होंने जिम्बाब्वे और न्यूजीलैंड जैसी टीमों के खिलाफ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया लेकिन इंग्लैंड के खिलाफ 70.80 औसत शानदार कहा जा सकता है। इससे पांच साल पहले जब उनकी क्रिकेट पूरे शबाब पर थी तब उन्होंने टेस्ट और वनडे में शतकों की जबर्दस्त झड़ी लगायी थी। तेंदुलकर ने 21 साल में प्रवेश करने और 25 साल पूरे करने तक 36 टेस्ट मैच खेले और 11 शतकों की मदद से 3030 रन बनाए। इस दौरान उनका औसत 61.83 रहा। इस बीच भारत ने श्रीलंका के खिलाफ सर्वाधिक 11 मैच खेले जिनमें तेंदुलकर ने 936 रन ठोके। यह ऐसा दौर था जबकि भारत ने जिम्बाब्वे के खिलाफ एक भी मैच नहीं खेला था।

दिलचस्प आंकड़ा यह है कि 20 साल की उम्र में जब कोई क्रिकेटर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण के बारे सोचता है तब तक तेंदुलकर 25 टेस्ट मैच खेल चुके थे। मुंबई के इस बल्लेबाज ने 20 साल की उम्र तक खेले गए इन मैचों में 44.76 की औसत से 1522 रन बनाए और पांच शतक ठोके। शुरुआती दौर में उनके आंकड़ें बाद के आंकड़ों से इसलिए अधिक प्रभावशाली नहीं दिखते, क्योंकि यह वही समय था जबकि भारत ने अपने अधिकतर मैच विदेशी सरजमीं पर खेले थे। तेंदुलकर ने 20 वर्ष पूरे करने तक भारत में केवल पांच टेस्ट मैच खेले जिनमें उन्होंने 75.00 की औसत से 375 रन बनाए थे।

इस बीच उन्होंने विदेशी सरजमीं पर 20 टेस्ट मैच में 39.55 की औसत से 1147 रन बनाए जिसमें चार शतक शामिल हैं। मैनचेस्टर में 1990 में खेली गयी उनकी 119 रन की पारी और फिर ऑस्ट्रेलियाई दौरे में दो शतक भला कौन भूल सकता है। भारत ने इस बीच सात देशों के खिलाफ मैच खेले लेकिन तेंदुलकर को ब्रायन लारा की वेस्टइंडीज टीम का सामना करने का मौका नहीं मिला था।

कप्तान के रूप में असफल रहे सचिन

वह दस अक्तूबर 1996 का दिन था, जब सचिन तेंदुलकर पहली बार कप्तान के रूप में टॉस करने के लिए उतरे थे। तेंदुलकर तब 23 साल और 169 दिन के थे, जब वह कप्तान के रूप में पहली बार दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में उतरे थे। विरोधी टीम थी ऑस्ट्रेलिया और भारत यह मैच जीतने में सफल रहा था। लेकिन रिकार्डों का बादशाह तेंदुलकर कप्तान के रूप में सफल नहीं रहा। उन्हें दो बार भारतीय टीम की कमान सौंपी गई लेकिन वह टीम को कभी वैसी सफलता नहीं दिला पाये जैसी कि उनसे उम्मीद की जा रही थी।

तेंदुलकर की अगुवाई में भारत ने 25 टेस्ट मैच खेले लेकिन इनमें से भारत केवल चार मैच में जीत दर्ज कर पाया जबकि नौ मैच में उसे हार मिली। इस बीच खुद तेंदुलकर के प्रदर्शन में कुछ गिरावट देखने को मिली। उन्होंने इन मैचों में 51.35 की औसत से 2054 रन बनाए जिसमें सात शतक शामिल हैं।

यदि क्रिकेट के दूसरे प्रारूप एकदिवसीय क्रिकेट की बात करें तो तेंदुलकर ने 73 मैचों में भारतीय टीम की कप्तानी की लेकिन वह केवल 23 मैचों में ही जीत का स्वाद चख पाये। इस बीच भारत ने 43 मैच गंवाये और स्वयं तेंदुलकर ने भी मान लिया कि वह बल्लेबाजी की तरह कप्तानी में सफलता हासिल नहीं कर पाएंगे। तेंदुलकर ने इन 73 वनडे मैचों में छह शतकों की मदद से 2454 रन बनाये। उनका औसत 37.75 रहा जबकि उनका ओवरआल औसत 44.83 है। यही नहीं जब उन्हें आईपीएल में मुंबई इंडियन्स का कप्तान बनाया गया तो वह अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर पाये थे। उनके कप्तानी से हटने के बाद मुंबई इंडियन्स दो बार चैंपियन्स लीग और एक बार आईपीएल जीतने में सफल रहा।

तेंदुलकर पहली बार 1996 में कप्तान बने लेकिन सवा साल तक ही कप्तान रहे और भारतीय टीम की कमान फिर से मोहम्मद अजहरुद्दीन को सौंप दी गई। भारतीय टीम इंग्लैंड में 1999 में खेले गए विश्व कप में कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई। यह वही समय था जब तेंदुलकर के पिता रमेश तेंदुलकर का निधन हो गया था और इस स्टार बल्लेबाज को इंग्लैंड से स्वदेश लौटना पड़ा था। उन्होंने तब वापस इंग्लैंड लौटकर शतक जड़ा था। भारतीय टीम के खराब प्रदर्शन के कारण हालांकि अजहरुद्दीन की कप्तानी जाती रही और फिर तेंदुलकर को टीम की कमान सौंपी गई। सचिन हालांकि उसके बाद आठ मैचों में ही कप्तानी कर पाए। उन्होंने मार्च 2010 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ बेंगलूर में आखिरी बार भारतीय टीम की कप्तानी की थी। इसके बाद सौरव गांगुली ने भारतीय टीम की कमान संभाली। गांगुली की अगुवाई में भारत ने निरंतर सफलताएं हासिल की।

जब सचिन ने नहीं खेले अपने पसंदीदा शॉट

सचिन तेंदुलकर का न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट श्रृंखला में तीन बार बोल्ड होना भले ही उनकी आलोचना का सबब बन गया था, लेकिन यह चैम्पियन क्रिकेटर अपने बल्ले से जवाब देने के फन में माहिर है और एक बार तो खराब फार्म से निजात पाने के लिये उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने पसंदीदा शाट्स ही नहीं खेले।

यह बात है 2003-04 के ऑस्ट्रेलिया दौरे की। पहले तीन टेस्ट में सचिन 16.40 की औसत से सिर्फ 82 रन बना सके थे। मीडिया ने एक बार फिर इस महान बल्लेबाज की काबिलियत पर उंगली उठाई, लेकिन इससे बेपरवाह सचिन ने चौथे टेस्ट में जो पारी खेली, वह उनकी मानसिक दृढता और परिपक्वता की नजीर बन गई। सचिन ने तय कर लिया था कि वह ऑफ स्टम्प से बाहर जाती गेंदों को नहीं खेलेंगे। ना कवर ड्राइव लगायेंगे और ना ही अपना पसंदीदा स्ट्रेट ड्राइव। वह 10 घंटे 13 मिनट और 436 गेंद की अपनी मैराथन पारी में इस निर्णय पर अडिग रहे और बनाये नाबाद 241 रन। इसमें उन्होंने अधिकांश रन लेग साइड पर बनाये। 

इस पारी को अपनी सर्वश्रेष्ठ मानने वाले सचिन ने बाद में कहा था कि मैं अपने सर्वश्रेष्ठ शतकों में इस पारी को शीर्ष पर रखूंगा। मैं पूरी पारी में अनुशासित बना रहा। पिछले कुछ मौकों पर शाट्स के चयन में मुझसे गड़बड़ी हुई, लिहाजा मैने कुछ स्ट्रोक्स नहीं खेलने का फैसला किया था। तेंदुलकर को भले ही अपने सौवें अंतरराष्ट्रीय शतक के लिये एक साल इंतजार करना पड़ा, लेकिन 15 नवंबर 1989 से लेकर अब तक के उनके कैरियर में रनों का अंबार लगाना और तिहरे अंक तक पहुंचना उनके लिये कठिन नहीं रहा। यही वजह है कि उन्हें रन मशीन की संज्ञा दी गई। 

क्रिकेट पंडित उनके एक मैच या श्रृंखला में नाकाम रहने पर गाहे बगाहे उन्हें संन्यास की सलाह दे डालते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि उनके बल्ले से रन अभी भी उसी शिद्दत से निकल रहे हैं। बकौल सचिन, जिस दिन सुबह सोकर उठने पर मेरे लिये कोई लक्ष्य नहीं रहेगा और मुझे बल्ला पकड़ने का मन नहीं करेगा, मैं खुद खेल को अलविदा कह दूंगा। स्कूल जाने की उम्र में पाकिस्तान जैसी तूफानी गेंदबाजों से भरी टीम के सामने क्रिकेट के मैदान पर अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले तेंदुलकर ने पहला टेस्ट शतक 14 अगस्त 1990 में इंग्लैंड के खिलाफ लगाया था। पहला वनडे शतक उन्होंने सितंबर 1994 में कोलंबो में लगाया। वनडे में दोहरा शतक जमाने वाले वह दुनिया के पहले बल्लेबाज बने। 

सचिन के पहले शतक की कहानी भी कम रोचक नहीं है। भारत जब आजादी की 43वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी में जुटा था, तब 17 बरस का यह मासूम हजारों मील दूर अंग्रेजों के खिलाफ उनकी धरती पर क्रिकेट का ककहरा सीख रहा था। डेवोन मैल्कम, एंगस फ्रेजर जैसे तूफानी गेंदबाजों का सामना करते हुए तेंदुलकर ने छठे नंबर पर दबाव के हालात में यह शतक बनाया। तेंदुलकर ने जब क्रीज पर कदम रखा, तब तक नवजोत सिंह सिद्धू, रवि शास्त्री, दिलीप वेंगसरकर और मोहम्मद अजहरूद्दीन आउट हो गए थे। तेंदुलकर के आने के बाद कपिल देव भी आउट हो गए। अब ढाई घंटे का खेल बचा था और इंग्लैंड को मैच जीतने के लिये चार विकेट चाहिये थे। मैदान पर थे सचिन और मनोज प्रभाकर। दोनों ने सातवें विकेट के लिये 160 रन जोड़कर मैच ड्रा कराया।

तेंदुलकर ने अपना 100वां अंतरराष्ट्रीय शतक 16 मार्च 2012 को ढाका में बांग्लादेश के खिलाफ बनाया, जबकि 99वां शतक 12 मार्च 2011 को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ नागपुर में बनाया था। बीच में कई बार वह शतक के करीब पहुंचे लेकिन उस जादुई आंकड़े को छू नहीं सके। दबाव बढ़ता जा रहा था और शेर-ए-बांग्ला स्टेडियम पर आखिरकार वह ऐतिहासिक पारी देखने को मिली, जिसका खुद तेंदुलकर को बेताबी से इंतजार रहा होगा। बाद में उन्होंने कहा भी कि मेरे सभी शतकों में यह सबसे मुश्किल शतक था। मैं जहां जाता, लोग इसी की चर्चा करते। होटल, रेस्त्रां या कहीं भी। लोग यह भूल जाते थे कि मैने 99 शतक बनाये हैं।