तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

LATEST:


Gyanvardhak Kahaniyan

ज्ञानवर्धक कहानियां

* सच्चा हिरा *



सायंकाल का समय था | सभी पक्षी अपने अपने घोसले में जा रहे थे | तभी गाव कि चार ओरते कुए पर पानी भरने आई और अपना अपना मटका भरकर बतयाने बैठ गई |

इस पर पहली ओरत बोली अरे ! भगवान मेरे जैसा लड़का सबको दे | उसका कंठ इतना सुरीला हें कि सब उसकी आवाज सुनकर मुग्ध हो जाते हें |

इसपर दूसरी ओरत बोली कि मेरा लड़का इतना बलवान हें कि सब उसे आज के युग का भीम कहते हें |

इस पर तीसरी ओरत कहाँ चुप रहती वह बोली अरे ! मेरा लड़का एक बार जो पढ़ लेता हें वह उसको उसी समय कंठस्थ हो जाता हें |

यह सब बात सुनकर चोथी ओरत कुछ नहीं बोली तो इतने में दूसरी ओरत ने कहाँ “ अरे ! बहन आपका भी तो एक लड़का हें ना आप उसके बारे में कुछ नहीं बोलना चाहती हो” |

इस पर से उसने कहाँ मै क्या कहू वह ना तो बलवान हें और ना ही अच्छा गाता हें |

यह सुनकर चारो स्त्रियों ने मटके उठाए और अपने गाव कि और चल दी |

तभी कानो में कुछ सुरीला सा स्वर सुनाई दिया | पहली स्त्री ने कहाँ “देखा ! मेरा पुत्र आ रहा हें | वह कितना सुरीला गान गा रहा हें |” पर उसने अपनी माँ को नही देखा और उनके सामने से निकल गया |

अब दूर जाने पर एक बलवान लड़का वहाँ से गुजरा उस पर दूसरी ओरत ने कहाँ | “देखो ! मेरा बलिष्ट पुत्र आ रहा हें |” पर उसने भी अपनी माँ को नही देखा और सामने से निकल गया |

तभी दूर जाकर मंत्रो कि ध्वनि उनके कानो में पड़ी तभी तीसरी ओरत ने कहाँ “देखो ! मेरा बुद्धिमान पुत्र आ रहा हें |” पर वह भी श्लोक कहते हुए वहाँ से उन दोनों कि भाति निकल गया |

तभी वहाँ से एक और लड़का निकला वह उस चोथी स्त्री का पूत्र था |

वह अपनी माता के पास आया और माता के सर पर से पानी का घड़ा ले लिया और गाव कि और निकल पढ़ा |

यह देख तीनों स्त्रीयां चकित रह गई | मानो उनको साप सुंघ गया हो | वे तीनों उसको आश्चर्य से देखने लगी तभी वहाँ पर बैठी एक वृद्ध महिला ने कहाँ “देखो इसको कहते हें सच्चा हिरा”

“ सबसे पहला और सबसे बड़ा ज्ञान संस्कार का होता हें जो किसे और से नहीं बल्कि स्वयं हमारे माता-पिता से प्राप्त होता हें | फिर भले ही हमारे माता-पिता शिक्षित हो या ना हो यह ज्ञान उनके अलावा दुनिया का कोई भी व्यक्ति नहीं दे सकता हें

=====================================================

जेल से खेत खोद डाला


एक बार एक मारवाड़ी ने जेल में बंद अपने बेटे
को पत्र लिखा… ” बेटा मुझे खेतो में आलू बोने है लेकिन में
बुड्डा हो गया हूँ इसलिए खेतो में खुदाई
नहीं कर
पा रहा हूँ..काश की तू यहाँ होता तो हम मिलकर
आलू बो देते…अब मुझे अकेले ही पूरा खेत
खोदना पड़ेगा..” बेटे ने वापस पत्र लिखा – बापू तू पागल
हो गया है क्या? तू खेत मत खोदना वहा मेने
हथियार छुपा रखे हैं…अगर तूने खेत खोद दिए
तो में बर्बाद हो जाऊंगा…
लैटर भेजते ही दुसरे दिन कई पुलिस वाले उस
किसान के खेत पर गए और हथियार ढूंढ़ने के लिए
पूरा खेत खोद डाला..लेकिन वहा उन्हें एक
भी हथियार नहीं मिला..
बेटे ने वापस पत्र लिखा – बापू अब तू खेत में
आलू बो देना..मैं जेल से तेरी इतनी ही मदद कर
सकता हूँ…

अस्तित्व बनाये रखें


एक जंगल में एक भयंकर सर्प रहता था। उसके आतंक के कारन कोई वहां से नहीं जाता था। एक दिन एक ऋषि उस रस्ते से गुजर रहे थे। उनको देखकर सर्प लपका और काटना चाहा, परन्तु ऋषि ने योग बल से उसपर विजय पा ली।सर्प शरणागत होकर बोला – क्षमा करिए ऋषिवर, मैं आपकी शरण में हूँ। ऋषि ने उसे क्षमा कर दिया, और कहा कि आज से तू किसी को नहीं काटेगा। सर्प मान गया। ऋषि चले गए। उनके जाने के बाद सर्प ने लोगों को काटना बंद कर दिया। किसी को वह नहीं काटता था और धीरे-धीरे जंगल का रास्ता खुल गया। लोग आने-जाने लगे। सर्प लोगों को देखकर मार्ग से हट जाता। चरवाहे लड़के वहां आने लगे। वह सर्प को देखते ही पत्थर मरने लगे। सर्प भागकर बिल में चला जाता था। वह मार खाते-खाते दुबला और घायल हो गया था। बहुत समय बाद मुनि उस रास्ते से गुजरे। सर्प ने प्रणाम किया और अपनी व्यथा बताई। मुनि बोले – मुर्ख मैंने काटने से मना किया था, फुफकारने के लिए नहीं। मुनिवर समझाकर चले गए। सर्प समझ गया। चरवाहे लड़के पत्थर मारने वाले ही थे, कि वह फुफकार उठा। लड़के घबराकर भाग गए। तब से उसे किसी ने पत्थर नहीं मारा।
मनुष्य को अकारण किसी पर आक्रमण नहीं करना चाहिए, परन्तु इतना डरपोक भी नहीं होना चाहिए कि कोई भी उसपर आक्रमण करने की हिम्मत कर सके। इसलिए अपना रोबीला अस्तित्व बनाये रखें, ताकि कोई भी आपकी ओर आँख उठाकर नहीं देख सके।

उपरवाले के दरबार में कोड़े :-


एक राजा के पास एक नौकर था,यूँ तो राजा के पास बहुत सारे नौकर थे जिनका काम सिर्फ महल की देख-रेख और साफ़ सफाई करना था. तो एक बार राजा का एक नौकर उनके शयन कक्ष की सफाई कर रहा था,सफाई करते करते उसने राजा के पलंग को छूकर देखा तो उसे बहुत ही मुलायम लगा,उसे थोड़ी इच्छा हुयी कि उस बिस्तर पर जरा लेट कर देखा जाए कि कैसा आनंद आता है,उसने कक्ष के चरों और देख कर इत्मीनान कर लिया कि कोई देख तो नहीं रहा.
जब वह आश्वस्त हो गया कि कोई उसे देख नहीं रहा है तो वह थोड़ी देर के लिए बिस्तर पर लेट गया.
वह नौकर काम कर के थका-हारा था,अब विडम्बना देखिये कि बेचारा जैसे ही बिस्तर पर लेटा,उसकी आँख लग गयी,और थोड़ी देर के लिए वह उसी बिस्तर पर सो गया..उसके सोये अभी मुश्किल से पांच मिनट बीते होंगे कि तभी कक्ष के सामने से गुजरते प्रहरी की निगाह उस सोये हुए नौकर पर पड़ी.
नौकर को राजा के बिस्तर पर सोते देख प्रहरी की त्यौरियां चढ़ गयी,उसने तुरंत अन्य प्रहरियों को आवाज लगायी.सोते हुए नौकर को लात मार कर जगाया और हथकड़ी लगाकर रस्सी से जकड लिया गया.
नौकर को पकड़ लेने के पश्चात उसे राजा के दरबार तक खींच के लाया गया.
राजा को सारी वस्तुस्थिति बताई गयी…उस नौकर की हिमाकत को सुनकर राजा की भवें तन गयी,यह घोर अपराध!! एक नौकर को यह भी परवाह न रही कि वह राजा के बिस्तर पर सो गया.
राजा ने फ़ौरन आदेश दिया ‘नौकर को उसकी करनी का फल मिलना ही चाहिए,तुरत इस नौकर को ५० कोड़े भरी सभा में लगाये जाएँ.’
नौकर को बीच सभा में खड़ा किया गया,और कोड़े लगने शुरू हो गए.
लेकिन हर कोड़ा लगने के बाद नौकर हँसने लगता था.जब १०-१२ कोड़े लग चुके थे,तब भी नौकर हँसता ही जा रहा था,राजा को यह देखकर अचरच हुआ.
राजा ने कहा ‘ठहरो!!’
सुनते ही कोड़े लगाने वाले रुक गए,और चुपचाप खड़े हो गए.
राजा ने नौकर से पूछा ‘यह बताओ कि कोड़े लगने पर तो तुम्हे दर्द होना चाहिए,लेकिन फिर भी तुम हंस क्यूँ रहे हो?’
नौकर ने कहा ‘हुजूर,मैं यूँ ही हंस नहीं रहा,दर्द तो मुझे खूब हो रहा है,लेकिन मैं यह सोचकर हँस रहा हूँ कि थोड़ी देर के लिए मैं आपके बिस्तर पर सो गया तो मुझे ५० कोड़े खाने पड़ रहे हैं,हुजूर तो रोज इस बिस्तर पर सोते हैं,तो उन्हें उपरवाले के दरबार में कितने कोड़े लगाये जायेंगे.’
इतना सुनना था कि राजा अनुत्तरित रह गए,उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने तुरत उस नौकर को आजाद करने का हुक्म दे दिया.

======================================================

मेरी तो पूरी दुनिया ही तुमसे है – माँ


मेरी माँ की सिर्फ एक ही आँख थी और इसीलिए मैं उनसे बेहद नफ़रत करता था | वो फुटपाथ पर एक छोटी सी दुकान चलाती थी | उनके साथ होने पर मुझे शर्मिन्दगी महसूस होती थी | एक बार वो मेरे स्कूल आई और मै फिर से बहुत शर्मिंदा हुआ | वो मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती है ? अगले दिन स्कूल में सबने मेरा बहुत मजाक उड़ाया |

मैं चाहता था मेरी माँ इस दुनिया से गायब हो जाये | मैंने उनसे कहा, ‘माँ तुम्हारी दूसरी आँख क्यों नहीं है? तुम्हारी वजह से हर कोई मेरा मजाक उड़ाता है | तुम मर क्यों नहीं जाती ?’ माँ ने कुछ नहीं कहा | पर, मैंने उसी पल तय कर लिया कि बड़ा होकर सफल आदमी बनूँगा ताकि मुझे अपनी एक आँख वाली माँ और इस गरीबी से छुटकारा मिल जाये |

उसके बाद मैंने म्हणत से पढाई की | माँ को छोड़कर बड़े शहर आ गया | यूनिविर्सिटी की डिग्री ली| शादी की | अपना घर ख़रीदा | बच्चे हुए | और मै सफल व्यक्ति बन गया | मुझे अपना नया जीवन इसलिए भी पसंद था क्योंकि यहाँ माँ से जुडी कोई भी याद नहीं थी | मेरी खुशियाँ दिन-ब-दिन बड़ी हो रही थी, तभी अचानक मैंने कुछ ऐसा देखा जिसकी कल्पना भी नहीं की थी | सामने मेरी माँ खड़ी थी, आज भी अपनी एक आँख के साथ | मुझे लगा मेरी कि मेरी पूरी दुनिया फिर से बिखर रही है | मैंने उनसे पूछा, ‘आप कौन हो? मै आपको नहीं जानता | यहाँ आने कि हिम्मत कैसे हुई? तुरंत मेरे घर से बाहर निकल जाओ |’ और माँ ने जवाब दिया, ‘माफ़ करना, लगता है गलत पते पर आ गयी हूँ |’ वो चली गयी और मै यह सोचकर खुश हो गया कि उन्होंने मुझे पहचाना नहीं |

एक दिन स्कूल री-यूनियन की चिट्ठी मेरे घर पहुची और मैं अपने पुराने शहर पहुँच गया | पता नहीं मन में क्या आया कि मैं अपने पुराने घर चला गया | वहां माँ जमीन मर मृत पड़ी थी | मेरे आँख से एक बूँद आंसू तक नहीं गिरा | उनके हाथ में एक कागज़ का टुकड़ा था… वो मेरे नाम उनकी पहली और आखिरी चिट्ठी थी |

उन्होंने लिखा था :

मेरे बेटे…

मुझे लगता है मैंने अपनी जिंदगी जी ली है | मै अब तुम्हारे घर कभी नहीं आउंगी… पर क्या यह आशा करना कि तुम कभी-कभार मुझसे मिलने आ जाओ… गलत है ? मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है | मुझे माफ़ करना कि मेरी एक आँख कि वजह से तुम्हे पूरी जिंदगी शर्मिन्दगी झेलनी पड़ी | जब तुम छोटे थे, तो एक दुर्घटना में तुम्हारी एक आँख चली गयी थी | एक माँ के रूप में मैं यह नहीं देख सकती थी कि तुम एक आँख के साथ बड़े हो, इसीलिए मैंने अपनी एक आँख तुम्हे दे दी | मुझे इस बात का गर्व था कि मेरा बेटा मेरी उस आँख कि मदद से पूरी दुनिया के नए आयाम देख पा रहा है | मेरी तो पूरी दुनिया ही तुमसे है |

चिट्ठी पढ़ कर मेरी दुनिया बिखर गयी | और मैं उसके लिए पहली बार रोया जिसने अपनी जिंदगी मेरे नाम कर दी… मेरी माँ| ———————————————————————————————

लालच बुरी बला है :-


एक शहर में एक आदमी रहता था। वह बहुत ही लालची था। उसने सुन रखा था की अगर संतो और साधुओं की सेवा करे तो बहुत ज्यादा धन प्राप्त होता है। यह सोच कर उसने साधू-संतो की सेवा करनी प्रारम्भ कर दी। एक बार उसके घर बड़े ही चमत्कारी संत आये।

उन्होंने उसकी सेवा से प्रसन्न होकर उसे चार दीये दिए और कहा,”इनमे से एक दीया जला लेना और पूरब दिशा की ओर चले जाना जहाँ यह दीया बुझ जाये, वहा की जमीन को खोद लेना, वहा तुम्हे काफी धन मिल जायेगा। अगर फिर तुम्हे धन की आवश्यकता पड़े तो दूसरा दीया जला लेना और पक्षिम दिशा की ओर चले जाना, जहाँ यह दीया बुझ जाये, वहा की जमीन खोद लेना तुम्हे मन चाही माया मिलेगी। फिर भी संतुष्टि ना हो तो तीसरा दीया जला लेना और दक्षिण दिशा की ओर चले जाना। उसी प्रकार दीया बुझने पर जब तुम वहाँ की जमीन खोदोगे तो तुम्हे बेअन्त धन मिलेगा। तब तुम्हारे पास केवल एक दीया बच जायेगा और एक ही दिशा रह जायेगी। तुमने यह दीया ना ही जलाना है और ना ही इसे उत्तर दिशा की ओर ले जाना है।”

यह कह कर संत चले गए। लालची आदमी उसी वक्त पहला दीया जला कर पूरब दिशा की ओर चला गया। दूर जंगल में जाकर दीया बुझ गया। उस आदमी ने उस जगह को खोदा तो उसे पैसो से भरी एक गागर मिली। वह बहुत खुश हुआ। उसने सोचा की इस गागर को फिलहाल यही रहने देता हूँ, फिर कभी ले जाऊंगा। पहले मुझे जल्दी ही पक्षिम दिशा वाला धन देख लेना चाहिए। यह सोच कर उसने दुसरे दिन दूसरा दीया जलाया और पक्षिम दिशा की ओर चल पड़ा। दूर एक उजाड़ स्थान में जाकर दीया बुझ गया। वहा उस आदमी ने जब जमीन खोदी तो उसे सोने की मोहरों से भरा एक घड़ा मिला। उसने घड़े को भी यही सोचकर वही रहने दिया की पहले दक्षिण दिशा में जाकर देख लेना चाहिए। जल्दी से जल्दी ज्यादा से ज्यादा धन प्राप्त करने के लिए वह बेचैन हो गया।

अगले दिन वह दक्षिण दिशा की ओर चल पड़ा। दीया एक मैदान में जाकर बुझ गया। उसने वहा की जमीन खोदी तो उसे हीरे-मोतियों से भरी दो पेटिया मिली। वह आदमी अब बहुत खुश था।

तब वह सोचने लगा अगर इन तीनो दिशाओ में इतना धन पड़ा है तो चौथी दिशा में इनसे भी ज्यादा धन होगा। फिर उसके मन में ख्याल आया की संत ने उसे चौथी दिशा की ओर जाने के लिए मन किया है। दुसरे ही पल उसके मन ने कहा,” हो सकता है उत्तर दिशा की दौलत संत अपने लिए रखना चाहते हो। मुझे जल्दी से जल्दी उस पर भी कब्ज़ा कर लेना चाहिए।” ज्यादा से ज्यादा धन प्राप्त करने की लालच ने उसे संतो के वचनों को दुबारा सोचने ही नहीं दिया।

अगले दिन उसने चौथा दीया जलाया और जल्दी-जल्दी उत्तर दिशा की ओर चल पड़ा। दूर आगे एक महल के पास जाकर दीया बुझ गया। महल का दरवाज़ा बंद था। उसने दरवाज़े को धकेला तो दरवाज़ा खुल गया। वह बहुत खुश हुआ। उसने मन ही मन में सोचा की यह महल उसके लिए ही है। वह अब तीनो दिशाओ की दौलत को भी यही ले आकर रखेगा और ऐश करेगा।

वह आदमी महल के एक-एक कमरे में गया। कोई कमरा हीरे-मोतियों से भरा हुआ था। किसी कमरे में सोने के किमती से किमती आभूषण भरे पड़े थे। इसी प्रकार अन्य कमरे भी बेअन्त धन से भरे हुए थे। वह आदमी चकाचौंध होता जाता और अपने भाग्य को शाबासी देता। वह जरा और आगे बढ़ा तो उसे एक कमरे में चक्की चलने की आवाज़ सुनाई दी। वह उस कमरे में दाखिल हुआ तो उसने देखा की एक बूढ़ा आदमी चक्की चला रहा है। लालची आदमी ने बूढ़े से कहा की तू यहाँ कैसे पंहुचा। बूढ़े ने कहा,”ऐसा कर यह जरा चक्की चला, मैं सांस लेकर तुझे बताता हूँ।”

लालची आदमी ने चक्की चलानी प्रारम्भ कर दी। बूढ़ा चक्की से हट जाने पर ऊँची-ऊँची हँसने लगा। लालची आदमी उसकी ओर हैरानी से देखने लगा। वह चक्की बंद ही करने लगा था की बूढ़े ने खबरदार करते हुए कहा, “ना ना चक्की चलानी बंद ना कर।” फिर बूढ़े ने कहा,”यह महल अब तेरा है। परन्तु यह उतनी देर तक खड़ा रहेगा जितनी देर तक तू चक्की चलाता रहेगा। अगर चक्की चक्की चलनी बंद हो गयी तो महल गिर जायेगा और तू भी इसके निचे दब कर मर जायेगा।” कुछ समय रुक कर बूढ़ा फिर कहने लगा,”मैंने भी तेरी ही तरह लालच करके संतो की बात नहीं मानी थी और मेरी सारी जवानी इस चक्की को चलाते हुए बीत गयी।”

वह लालची आदमी बूढ़े की बात सुन कर रोने लग पड़ा। फिर कहने लगा,”अब मेरा इस चक्की से छुटकारा कैसे होगा?”

बूढ़े ने कहा,”जब तक मेरे और तेरे जैसा कोई आदमी लालच में अंधा होकर यहाँ नही आयेगा। तब तक तू इस चक्की से छुटकारा नहीं पा सकेगा।” तब उस लालची आदमी ने बूढ़े से आखरी सवाल पूछा,”तू अब बाहर जाकर क्या करेगा?”

बूढ़े ने कहा,”मैं सब लोगो से ऊँची-ऊँची कहूँगा, लालच बुरी बला है।”

——————————————————————————–

झरने का पानी :-


महात्मा बुद्ध एक बार अपने शिष्य आनंद के साथ कहीं जा रहे थे। वन में काफी चलने के बाद दोपहर में एक वृक्ष तले विश्राम को रुके और उन्हें प्यास लगी।

आनंद पास स्थित पहाड़ी झरने पर पानी लेने गया, लेकिन झरने से अभी-अभी कुछ पशु दौड़कर निकले थे जिससे उसका पानी गंदा हो गया था। पशुओं की भाग-दौड़ से झरने के पानी में कीचड़ ही कीचड़ और सड़े पत्ते बाहर उभरकर आ गए थे। गंदा पानी देख आनंद पानी बिना लिए लौट आया।

उसने बुद्ध से कहा कि झरने का पानी निर्मल नहीं है, मैं पीछे लौटकर नदी से पानी ले आता हूं। लेकिन नदी बहुत दूर थी तो बुद्ध ने उसे झरने का पानी ही लाने को वापस लौटा दिया।

आनंद थोड़ी देर में फिर खाली लौट आया। पानी अब भी गंदा था पर बुद्ध ने उसे इस बार भी वापस लौटा दिया। कुछ देर बार जब तीसरी बार आनंद झरने पर पहुंचा, तो देखकर चकित हो गया। झरना अब बिलकुल निर्मल और शांत हो गया था, कीचड़ बैठ गया था और जल बिलकुल निर्मल हो गया था।

महात्मा बुद्ध ने उसे समझाया कि यही स्थिति हमारे मन की भी है। जीवन की दौड़-भाग मन को भी विक्षुब्ध कर देती है, मथ देती है। पर कोई यदि शांति और धीरज से उसे बैठा देखता है रहे, तो कीचड़ अपने आप नीचे बैठ जाता है और सहज निर्मलता का आगमन हो जाता है।

——————————————————————————–

एक सुन्दर सी गुडिया :-


एक छोटा सा लड़का जिस की उम्र कोई 6 या 7 साल थी. एक खिलोने की दूकान पर खड़ा दुकानदार से कुछ बात कर रहा था, दुकानदार ने न जाने उससे क्या कहा की वो वह से थोडा सा दूर हट गया और वहां से खड़े खड़े वो कभी दुकान पर रखी एक सुन्दर सी गुडिया को देखता और कभी अपनी जेब में हाथ डालता. वो फिर आँख बंद करके कुछ सोचता और फिर दुबारा गुडिया को देखने और अपनी जेब टटोलने का क्रम दुहराने लगता.

वही कुछ दूर पर खड़ा एक आदमी बहुत देर से उसकी और देख रहा था. वो आदमी जैसे ही आगे को बढ़ा वो बच्चा दुकानदार के पास गया और कुछ बोला फिर दुकानदार की आवाज सुने पड़ी की नहीं तुम ये गुडिया नहीं खरीद सकते क्योकि तुम्हारे पास जो पैसे है वो काफी कम है.

वो बच्चा उस आदमी की और मुड़ा और उसने उस आदमी से पूछा अंकल क्या आपको लगता है की मेरे पास वास्तव में कम पैसे है. उस आदमी ने पैसे गिने और बोला हां बेटा ये वास्तव में कम है. तुम इतने पैसो से वो गुडिया नहीं खरीद सकते. उस लड़के ने आह भरी और फिर उदास मन से उस गुडिया को घूरने लगा.

अब उस आदमी ने उस लड़के से पूछा ” तुम ये गुडिया ही क्यों लेना चाहते हो”. लड़के ने उत्तर दिया ये गुडिया मेरी बहिन को बहुत पसंद है. और में ये गुडिया उसको उसके जन्मदिन पर गिफ्ट करना चाहता हु. मुझे ये गुडिया अपनी माँ को देनी है, ताकि वो ये गुडिया मेरे बहिन को दे दें जब वो उसके पास जाये.

उस आदमी ने पूछा कहा रहती है तुम्हारी बहिन. छोटा लड़का बोला मेरे बहिन भगवान के पास चली गयी है. और पापा कहते है जल्दी ही मेरी माँ भी उससे मिलने भगवान के पास जाने वाली है. और मै चाहता हु की मेरी माँ जब भगवान के पास जाये तो वो ये गुडिया मेरी बहीन के लिए ले जाये. उस आदमी की आखों से आंसू छलकने लगे थे. पर लड़का अभी बोल ही रहा था.

वो कह रहा था की मै पापा से कहूँगा की वो माँ को कहे की कुछ और तक दिन भगवान के पास न जाये. ताकि मै कुछ और पैसे जमा कर लूँ और ये गुडिया ले कर अपनी बहिन के लिए भेज दू. फिर उसने अपनी एक फोटो जेब से निकली इस फोटो में वो हँसता हुआ बहुत सुन्दर दिख रहा था.

फोटो दिखाकर वो बोला ये फोटो भी मै अपनी माँ को दे दूंगा, ताकि वो इसे भी मेरी बहिन को दे ताकि वो हमेशा मुझे याद रख सके…………. मै जानता हु की मेरी माँ इतनी जल्दी मुझे छोड़ कर मेरी बहिन से मिलने नहीं जाएगी. लेकिन पापा कहते है की वो 2 -1 दिन में चली जाएगी.

उस आदमी ने झट से अपनी जेब से पर्स निकला और उसमे से एक 100 रुपए का नोट निकल कर कहा……….. लाओ अपने पैसे दो मै दुकानदार से कहता हु शायद वो इतने पैसे में ही दे दे. और उसने उस लड़के के सामने रुपये गिनने का अभिनय किया और बोला…….. अरे तुम्हारे पास तो उस गुडिया की कीमत से अधिक पैसे है. उस लड़के ने आकाश की और देख कर कहा भगवान तेरा धन्यवाद….

अब वो लड़का उस आदमी से बोला कल रात को मैंने भगवान से कहा था की हे भगवान मुझे इतने पैसे दे देना की मै वो गुडिया ले सकू. वैसे मै एक सफ़ेद गुलाब भी लेना चाहता था किन्तु भगवान से ज्यादा मांगना मुझे ठीक नहीं लगा. पर उसने मुझे खुद ही इतना दे दिया की मै गुडिया और गुलाब दोनों ले सकता हु. मेरी माँ को सफ़ेद गुलाब बहुत पसंद है.

उस आदमी की आँखों से आंसू नीचे गिरने लगे. फिर उसने उन्हें संभलते हुए उस लड़के से कहा ठीक है बच्चे अपना ख्याल रखना. और वो वहा से चला गया. रस्ते भर उस आदमी के दिमाग मै वो लड़का छाया रहा. फिर अचानक उसे 2 दिन पहले अख़बार मै छपी खबर याद आयी जिस में एक हादसा छपा था की किसी युवक ने शराब के नशे में एक दूसरी गाड़ी को टक्कर मार दी.

गाड़ी में सवार एक लडकी की मौके पर ही मौत हो गयी और महिला गंभीर रूप से घायल थी. अब उसके मन में सवाल आया कही ये उस लड़के की माँ और बहिन ही तो नहीं थे.

अगले दिन अख़बार में खबर आयी की उस महिला की भी मौत हो गयी है. वो आदमी उस महिला के घर सफ़ेद गुलाब के फूल ले कर गया. उस महिला की लाश आँगन में रखी थी. उसकी छाती पर वो सुन्दर सी गुडिया थी जो उस लड़के ने ली थी और उस महिला के एक हाथ में उस लड़के की वो फोटो थी और दुसरे में वो सफ़ेद गुलाब का फूल था.

वो आदमी रोता हुआ बाहर निकला. उसके मन मै एक ही बात थी एक शराब के नशे मै चूर एक युवक के कारन एक छोटा सा बच्चा अपनी माँ और बहिन से दूर हो गया जिन्हें वो बहुत प्यार करता था.

इस कहानी को पढ़कर और इस समय लिखते हुए भी मेरे आँखों मै भी पानी है. और शायद आपकी आँखों में भी आ जाये मगर उस पानी को आँशु मत समझ लेना. वो पानी बेशक नमकीन हो सकता है जैसे आँशु होते है. पर वो आँशु नहीं होंगे.

अगर ये कहानी पढने के बाद आपकी आँखों में आँशु आते है जो आपको बदलने को मजबूर कर दे तो ही उनको आँशु मानना नहीं तो वो पानी ही होगा.

और अगर आपकी आँखों में वास्तव में आँशु है पानी नहीं तो प्रण करे की आजके बाद कभी न तो शराब पी कर गाड़ी चलाएंगे, न कानो में एयर फ़ोन लगा कर गाने सुनते हुए गाडी मोटर साइकिल या कोई वाहन चलाएंगे न गाड़ी चलते समय फ़ोन पे बात करेंगे ना ही कभी तेज़ रफ़्तार में गाड़ी चलाएंगे ………

——————————————————————————–

अनमोल वचन व्यर्थ न करें :-


एक गांव में सप्ताह के एक दिन प्रवचन का आयोजन होता था। इसकी व्यवस्था गांव के कुछ प्रबुद्ध लोगों ने करवाई थी ताकि भोले-भाले ग्रामीणों को धर्म का कुछ ज्ञान हो सके। इसके लिए एक दिन एक ज्ञानी पुरुष को बुलाया गया। गांव वाले समय से पहुंच गए। ज्ञानी पुरुष ने पूछा – क्या आपको मालूम है कि मैं क्या कहने जा रहा हूं? गांव वालों ने कहा – नहीं तो…। ज्ञानी पुरुष गुस्से में भरकर बोले – जब आपको पता ही नहीं कि मैं क्या कहने जा रहा हूं तो फिर क्या कहूं। वह नाराज होकर चले गए। गांव के सरपंच उनके पास दौड़े हुएपहुंचे और क्षमायाचना करके कहा कि गांव के लोग तो अनपढ़ हैं, वे क्या जानें कि क्या बोलना है। किसी तरह उन्होंने ज्ञानी पुरुष को फिर आने के लिए मना लिया।

अगले दिन आकर उन्होंने फिर वही सवाल किया – क्या आपको पता है कि मैं क्या कहने जा रहा हूं? इस बार गांव वाले सतर्क थे। उन्होंने छूटते ही कहा – हां, हमें पता है कि आप क्या कहेंगे। ज्ञानी पुरुष भड़कगए। उन्होंने कहा -जब आपको पता ही है कि मैं क्या कहने वाला हूं

तो इसका अर्थ हुआ कि आप सब मुझसे ज्यादा ज्ञानी हैं। फिर मेरी क्या आवश्यकता है? यह कहकर वह चल पड़े। गांव वाले दुविधा में पड़गए कि आखिर उस सज्जन से किस तरह पेश आएं, क्या कहें।

उन्हें फिर समझा-बुझाकर लाया गया। इस बार जब उन्होंने वही सवाल किया तो गांव वाले उठकर जाने लगे। ज्ञानी पुरुष ने क्रोध में कहा – अरे,मैं कुछ कहने आया हूं तो आप लोग जा रहेहैं। इस पर कुछ गांव वालों ने हाथ जोड़कर कहा – देखिए,आप परम ज्ञानी हैं। हम गांव वाले मूढ़और अज्ञानी हैं। हमें आपकी बातें समझ में नहीं आतीं। कृपया अपने अनमोल वचन हम पर व्यर्थ न करें। ज्ञानी पुरुष अकेले खड़े रह गए।

उनका घमंड चूरचूर हो गया|

——————————————————————————–

गुरु-तोते का संदेश :-


एक गांव में एक आदमी अपने तोते के साथ रहता था, एक बार जब वह आदमी किसी काम से दूसरे गांव जा रहा था, तो उसके तोते ने उससे कहा – मालिक, जहाँ आप जा रहे हैं वहाँ मेरा गुरु-तोता रहता है. उसके लिए मेरा एक संदेश ले जाएंगे ?

क्यों नहीं ! – उस आदमी ने जवाब दिया, तोते ने कहा मेरा संदेश है-:

आजाद हवाओं में सांस लेने वालों के नाम एक बंदी तोते

का सलाम | वह आदमी दूसरे गांव पहुँचा और

वहाँ उस गुरु-तोते को अपने प्रिय तोते का संदेश बताया, संदेश सुनकर गुरु- तोता तड़पा, फड़फड़ाया और मर गया .. जब वह आदमी अपना काम समाप्त कर

वापस घर आया, तो उस तोते ने पूछा कि क्या उसका संदेश गुरु- तोते तक पहुँच गया था, आदमी ने तोते को पूरी कहानी बताई कि कैसे उसका संदेश सुनकर

उसका गुरु तोता तत्काल मर गया था | यह बात सुनकर वह तोता भी तड़पा,

फड़फड़ाया और मर गया | उस आदमी ने बुझे मन से तोते को पिंजरे से बाहरनिकाला और उसका दाह-संस्कार करने के लिए ले

जाने लगा, जैसे ही उस आदमी का ध्यान थोड़ा भंगहुआ,

वह तोता तुरंत उड़ गया और जाते जाते उसने अपने मालिक को बताया –

“मेरे गुरु-तोते ने मुझे संदेश भेजा था कि अगर

आजादी चाहते हो तो पहले मरना सीखो”. . . . . . . . बस आज का यही सन्देश कि अगर वास्तव में आज़ादी की हवा में साँस लेना चाहते हो तो उसके लिए

निर्भय होकर मरना सीख लो . . . क्योकि साहस की कमी ही हमें झूठे

और आभासी लोकतंत्र के पिंजरे में कैद कर के रखती हैं”.

वरदान का इस्तेमाल :-

एक बार एक व्यक्ति ने घोर तपस्या करके भगवान को प्रसन्न कर लिया। भगवान ने उसकी तपस्या से प्रसन्न

होकर उसे वर दिया कि जीवन में एक बार सच्चे मन से जो चाहोगे वही हो जाएगा।

उस व्यक्ति के जीवन में अनेक अवसर आए, जब वह इस वरदान का इस्तेमाल कर अपने जीवन को सुखी बना सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। कई बार भूखों मरने की नौबत आई, लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ।

अनेक ऐसे अवसर भी आए, जब वह इस वरदान का प्रयोग कर देश की काया पलट कर सकता था, अथवा समाज को खुशहाल बना सकता था, लेकिन उसने ऐसा भी नहीं किया। वह उस अवसर की तलाश में था जब मौत

आएगी और वह अपने वरदान का इस्तेमाल कर अमर हो जाएगा और दुनिया को दिखा देगा कि अपने वरदान का उसने कितनी बुद्धिमत्ता से इस्तेमाल किया है। लेकिन मौत तो किसी को सोचने का अवसर देती नहीं। उसने चुपके से एक दिन उसे आ दबोचा। उस का वरदान धरा का धरा रह गया।

मौत से पहले जी लेने का अर्थ है अपनी सामर्थ्य अथवा इन नेमतों का सदुपयोग कर लेना। और यह बेहद जरूरी है और अभी करना जरूरी है। बाद में तो कोई अवसर मिलने से रहा। ये दौलत, ये बाहुबल, ये सत्ता की ताकत कुछ भी साथ नहीं जाने वाला। जिन के लिए ये सब कर रहे हो उन के भी काम नहीं आने वाला है।

साथी की उम्मीद :-

एक जापानी अपने मकान की मरम्मत के लिए उसकी दीवार को खोल रहा था। ज्यादातर जापानी घरों में लकड़ी की दीवारो के बीच जगह होती है। जब वह लकड़ी की इस दीवार को उधेड़ रहा तो उसने देखा कि वहां दीवार में एक

छिपकली फंसी हुई थी। छिपकली के एक पैर में कील ठुकी हुई थी।

उसने यह देखा और उसे छिपकली पर रहम आया। उसने इस मामले में उत्सुकता दिखाई और गौर से उस छिपकली के पैर में ठुकी कील को देखा। अरे यह क्या! यह तो वही कील है जो दस साल पहले मकान बनाते वक्त ठोकी गई थी। यह क्या !!!!

क्या यह छिपकली पिछले दस सालों से इसी हालत से दो चार है?

दीवार के अंधेरे हिस्से में बिना हिले-डुले पिछले दस सालों से!! यह नामुमकिन है। मेरा दिमाग इसको गवारा नहीं कर रहा। उसे हैरत हुई। यह छिपकली पिछले दस सालों से आखिर जिंदा कैसे है!!! बिना एक कदम हिले-डुले जबकि इसके पैर में कील ठुकी है!

उसने अपना काम रोक दिया और उस छिपकली को गौर से देखने लगा। आखिर यह अब तक कैसे रह पाई औरक्या और किस तरह की खुराक इसे अब तक मिल पाई।

इस बीच एक दूसरी छिपकली ना जाने कहां से वहां आई जिसके मुंह में खुराक थी।

अरे!!!! यह देखकर वह अंदर तक हिल गया। यह दूसरी छिपकली पिछले दस सालों से इस फंसी हुई छिपकली को खिलाती रही।

जरा गौर कीजिए वह दूसरी छिपकली बिना थके और अपने साथी की उम्मीद छोड़े बिना लगातार दस साल से उसे

खिलाती रही। आप अपने गिरेबां में झांकिए क्या आप अपने जीवनसाथी के लिए ऐसी कोशिश कर सकते हैं?

जीवन जीने के मौके बार बार नहीं मिलते :-


पीटर एक प्रसन्नचित छोटा लड़का था हर कोई उसे प्यार करता था, लेकिन उसकी एक कमजोरी भी थी…. पीटर कभी भी वर्तमान में नहीं रह सकता था…. उसने जीवन की प्रक्रिया का आनंद लेना नहीं सीखा था…. जब वह स्कूल में होता तो वह बाहर खेलने के स्वप्न देखता…. जब बाहर खेलता तो गर्मियों की छुट्टियों के स्वप्न देखता था.

पीटर निरंतर दिवास्वप्न में खोया रहता…. उसके पास उन विशेष क्षणों का आनंद लेने का समय नहीं था जो उसके जीवन में थे…. एक सुबह पीटर आपने घर के निकट एक जंगल में घूम रहा था…. थकान महसूस करने पर उसने घास युक्त एक स्थान पर आराम करने का निश्चय किया और अंततः उसे नींद आ गयी…. उसे गहरी नींद में सोये हुए कुछ ही मिनट हुए थे कि उसने किसी को अपना नाम पुकारते सुना…. पीटर…. पीटर…. ऊपर से तेज कर्कश आवाज आई…. जैसे ही उसने आँखे खोली वह एक आश्चर्यजनक स्त्री को अपने ऊपर खड़ा हुआ देख कर चकित हो गया…. वह सौ वर्ष से अधिक उम्र की रही होगी…. उसके बाल बर्फ जैसे सफ़ेद थे…. उसके झुर्रियों से भरे हाथ में एक जादुई छोटी गेंद थी जिसके बीचों बीच एक छेद था जिससे बाहर की ओर एक लम्बा सुनहरा धागा लटक रहा था.

पीटर…. उसने कहा…. यह तुम्हारे जीवन का धागा है…. यदि तुम इस धागे को थोडा सा खींचोगे तो एक घंटा कुछ ही सेकेंड में बीत जायेगा…. यदि तुम इस जरा जोर से खींचोगे तो पूरा दिन कुछ मिनटों में ही ख़त्म हो जायेगा…. और यदि तुम पूरी शक्ति के साथ इसे खींचोगे तो अनेक वर्ष कुछ दिनों में व्यतीत हो जायेंगें…. पीटर इस बात को जानकार बहुत उत्साहित हो गया…. मै इसे अपने पास रखना चाहूँगा यदि यह मुझे मिल जाये तो…. उसने कहा…. वह महिला शीघ्र नीचे पहुंची और उसने वह गेंद उस लड़के को देदी.

अगले दिन पीटर अपनी कक्षा में बैचैनी और बोरियत अनुभव कर रहा था…. तभी उसे अपने नए खिलोने की याद आ गयी…. जैसे ही उसने सुनहरे धागे को खिंचा उसने अपने आप को घर के बगीचे में खेलता हुआ पाया…. जादुई धागे की शक्ति पहचानकर पीटर जल्द ही स्कूल जाने वाले लड़के की भूमिका से उकता गया और अब उसकी किशोर बनने की इच्छा हुई…. उस पूर्ण जोश के साथ जो जीवन के उस दौर में होता है…. उसने गेंद बाहर निकाली और धागे को कस कर खींच दिया.

अचानक वह किशोर वय का लड़का बन गया जिसके साथ सुन्दर गर्ल फ्रेंड एलिस थी…. लेकिन पीटर अब भी संतुष्ट नहीं था…. उसने वर्तमान में सुख पाना और जीवन की हर अवस्था के साधारण आश्चर्यों को खोजना कभी नहीं सीखा था…. इसके बजाय वह प्रौढ़ बनने के स्वप्न देखने लगा…. उसने फिर से धागा खींच दिया.

अब उसने पाया की वह एक मध्यम आयु के प्रौढ़ व्यक्ति में परिवर्तित हो चुका है…. एलिस उसकी पत्नी है…. वह बहुत सारे बच्चों से घिरा है…. उसके बाल भूरे हो रहे हैं…. उसकी मां कमजोर और बूढी हो गयी है…. लेकिन वह उन क्षणों को भी ना जी सका…. उसने कभी भी वर्तमान में जीना नहीं सीखा…. इसलिए उसने फिर धागा खींच दिया और परिवर्तन की प्रतीक्षा करने लगा.

अब पीटर ने पाया कि वह एक नब्बे वर्ष का बूढ़ा व्यक्ति है…. उसके बाल सफ़ेद हो चुके हैं…. उसकी पत्नी मर चुकी है…. उसके बच्चे बड़े हो चुके हैं और घर छोड़ के जा चुके हैं.

अपने सम्पूर्ण जीवन में पहली बार पीटर को यह बात समझ में आई कि उसने कभी भी जीवन की प्रशंसनीय बातों को समय पर अंगीकार नहीं किया था…. वह बच्चों के साथ कभी भी मछली पकड़ने नहीं गया…. ना ही कभी एलिस के साथ चांदनी रातों में घूमने गया…. उसने कभी भी बागीचा नहीं लगाया…. ना ही कभी उत्कृष्ट पुस्तकों को पढ़ा…. उसकी पूरी जिन्दगी जल्दबाजी में थी…. उसने रुक कर मार्ग में अच्छाइयों को नहीं देखा.

पीटर यह जान कर दुखी हो गया …. उसने जंगल में जाने का निश्चय किया…. जहाँ वह लड़कपन में जाया करता था…. अपने को तरोताजा और उत्साहपूर्ण करने के लिए…. वह एक बार फिर घास के मैदान में सो गया…. एक बार फिर उसने वोही आवाज सुनी…. पीटर…. पीटर…. उसकी आँख खुली तो वह देखता है वही स्त्री वहां खड़ी थी…. उसने पीटर से पूछा कि उसने उसके उपहार का आनंद कैसे लिया…. पीटर ने स्पष्ट उत्तर दिया…. पहले तो मुझे यह मनोरंजक लगा लेकिन अब मुझे इससे घृणा हो गयी है…. मेरा सम्पूर्ण जीवन बिना कोई सुख भोगे मेरी आँखों के सामने से निकल गया…. मैंने जीवन जीने का अवसर खो दिया है…. तुम बहुत कृतघ्न हो…. उस स्त्री ने कहा …. फिर भी मै तुम्हारी एक अंतिम इच्छा पूरी करुँगी.

पीटर ने एक क्षण के लिए सोचा…. और कहा…. मै फिर से वापस स्कूल जाने वाला लड़का बनना चाहता हूँ…. वह फिर गहरी नींद में सो गया…. फिर उसने किसी को अपना नाम पुकारते सुना…. आँख खोलने पर देखा तो उसकी मां उसे पुकार रही थी…. वो उसके स्कूल के लिए देर होने के कारण पुकार रही थी…. पीटर समझ गया कि वह वापस अपने पुराने जीवन में आ गया है…. वह परिपूर्ण जीवन जीने लगा…. जिसमे बहुत से आनंद…. हर्ष और विजयोत्सव थे…. लेकिन यह तभी संभव हो पाया जब वह वर्तमान में जीने लगा.

पीटर को तो दुबारा जीने का मौका मिल गया यह कहानी में तो संभव है लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि वास्तविक जीवन में मौके बार बार नहीं मिलते…. जीवन जीने के मौके बार बार नहीं मिलते…. आज भी हमारे पास मौका है…. ध्यान रहे हम इसे खो ना दें.

——————————————————————————–

Self Appraisal:-


एक छोटा बच्चा एक बड़ी दूकान पर लगे टेलीफोनबूथ पर जाता हैं और मालिक से छुट्टे पैसे लेकर एक नंबर डायल करता हैं| दूकान का मालिक उस

लड़के को ध्यान से देखते हुए उसकी बातचीत पर ध्यान देता हैं लड़का- मैडम क्या आप मुझे अपने बगीचे की साफ़ सफाई का काम देंगी?

औरत-(दूसरी तरफ से) नहीं, मैंने एक दुसरे लड़के को अपने बगीचे का काम देखने के लिए रखलिया हैं|

लड़का-मैडम मैं आपके बगीचे का काम उस लड़के से आधे वेतन में करने को तैयार हूँ!

औरत-मगर जो लड़का मेरे बगीचे का काम कर रहा हैं उससे मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ|

लड़का-(और ज्यादा विनती करते हुए) मैडम मैं आपके घर की सफाई भी फ्री में कर दिया करूँगा!!

औरत- माफ़ करना मुझे फिर भी जरुरत नहीं हैं धन्यवाद|

लड़के के चेहरे पर एक मुस्कान उभरी और उसने फोन का रिसीवर रख दिया| दूकान का मालिक जो छोटे लड़के की बात बहुत ध्यान से सुन रहा था वह लड़के के पास आया और बोला- ” बेटा मैं तुम्हारी लगन और व्यवहार से बहुत खुश हूँ, मैं तुम्हे अपने स्टोर में नौकरी दे सकता हूँ”

लड़का- नहीं सर मुझे जॉब की जरुरत नहीं हैं आपका धन्यवाद|

दुकान मालिक-(आश्चर्य से) अरे अभी तो तुम उस लेडी से जॉब के लिए इतनी विनती कर रहे थे !!

लड़का- नहीं सर, मैं अपना काम ठीक से कर रहा हूँ की नहीं बस मैं ये चेक कर रहा था, मैं जिससे बात कर रहा था,उन्ही के यहाँ पर जॉब करता हूँ|”This is called Self Appraisal”