तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे भाषा के विशेषज्ञ पढ़कर कहें कि ये कलम का छोटा सिपाही ऐसा है तो भीष्म साहनी, प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', हरिवंश राय बच्चन, फणीश्वर नाथ रेणु आदि कैसे रहे होंगे... गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.

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हावड़ा ब्रिज : एक पुल हजार अफसाने~राजेश मिश्रा

हावड़ा ब्रिज कोलकाता का प्रवेश द्वार ही नहीं बल्कि यह शहर का लैंडमार्क भी बन चुका है

Howrah Bridge : The pride of Bengal : Rajesh Mishra
Rajesh Mishra, Kolkata (inset-Howrah Bridge, Dakhineshwar temple, Metro)

आइये राजेश मिश्रा, कोलकाता के माध्यम से जानते हैं इसकी पूरी इतिहास, इसके अति व्यस्त रहने का कारण, इसे तैयार होने में आई व्यवधान, इसके निर्माता-सहयोगी, इसके रखरखाव, इंसान द्वारा हो रही नुक्सान... आदि के बारें में... साथ ही राज आपको बता रहे हैं की यह पुल पश्चिम बंगाल के दो बड़े शहरों हावड़ा और कोलकाता को जोड़ता है। 

इतिहास के कई पन्नों में इस पुल का जिक्र है जिस कारण यह कोलकाता की संस्कृति का प्रतीक भी बन चुका है। पुल जो बन गया बंगाल की शान, पुल जो बन गया बंगाल की एक पहचान। जी हां, हम बात कर रहे हैं बेहद मशहूर और दुनिया के सबसे व्यस्त पुल हावड़ा ब्रिज की। एक पुल हजार अफसाने, करोड़ो लोग रोटी की तलाश में इस पुल को पार कर देश के सबसे बड़े शहरों में से एक कोलकाता में प्रवेश करते हैं और भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं। जैसे ही आप रेल से उतर कर हावड़ा रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते हैं, सामने हावड़ा ब्रिज गर्व से मुस्कुराता दिखाई देता है। हमारे देश में नदियों पर हजारों पुल बने हैं पर हावड़ा ब्रिज कोलकाता का प्रवेश द्वार ही नहीं बल्कि यह शहर का लैंडमार्क भी बन चुका है।

हावड़ा ब्रिज हुगली नदी पर बना एक बहुत ही मशहूर पुल है जो पश्चिम बंगाल के दो बड़े शहरों हावड़ा और कोलकाता को जोड़ता है। इतिहास के कई पन्नों में इस पुल का जिक्र है जिस कारण यह कोलकाता की संस्कृति का प्रतीक भी बन चुका है।

हावड़ा ब्रिज को बनाने में हुई थी कितनी मशक्कत यह शायद आपको पता नहीं


इस पुल को बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। आजादी से चंद साल पहले बने इस पुल ने काफी परेशानियों का सामना किया। 74 साल पुराने इस पुल ने अपने अंदर कई कहानियां समेटी हुई हैं। बंगाल को एक नई पहचान और दो बड़े शहरों को जोड़ने की जोर-आजमाइश ने इस पुल को देने के लिए इंग्लैंड से स्टील का समझौता किया गया। लेकिन जापान के धमकी की वजह से सिर्फ 3000 टन स्टील ही लाया जा सका। बाकि स्टील की खरीद टाटा स्टील से की गई। इसे बनाने में 26,500 टन स्टील खपत हुई थी, जिसमें से 87% स्टील टाटा स्टील कम्पनी द्वारा खरीदा गया था। 

Rajesh Mishra, Kolkata

इस पुल को बनाने के लिए 20 से भी ज्यादा कंपनियों को भी चुना गया था, जिसमें जर्मनी की एक कम्पनी ने सबसे कम की बोली लगाई। लेकिन विश्व युद्ध और राजनैतिक कारणों से इस कम्पनी को कॉन्ट्रैक्ट नहीं दिया जा सका। आखिर में 1935 में इसका कॉन्ट्रैक्ट एक ब्रिटिश कम्पनी Cleveland Bridge & Engineering Co. Ltd. को दिया गया था। लेकिन इसकी संरचना Braithwaite Burn and Jessop Construction Co. Ltd. नामक कम्पनी द्वारा किया गया। इस पूरे ब्रिज का प्रारूप Rendel, Palmer और Tritton के द्वारा किया गया था। 

इस खूबसूरत पुल को बनने में लगभग 6 साल लगे। 3 फरवरी 1943 में इसका इस्तेमाल शुरू हुआ, जो आज तक जारी है। यह पुल 2,313 फीट लम्बा और 269 फीट ऊंचा है। इसकी चौड़ाई 71 फीट है, जिसमें दोनों तरफ 15-15 इस पूरे पुल को बनाने में. उस जमाने में 2 करोड़ 50 लाख की लागत आई थी। यह उम्दा इंजीनियरिंग की बेहतरीन मिसाल है क्योंकि इतने बड़े इस ब्रिज में एक भी नट-बोल्ट नहीं है। इसमें धातुओं को झलाई यानि वेल्डिंग द्वारा जोड़ा गया है।

हावड़ा नहीं इसका नाम है 'रवीन्द्र सेतु'


आज जहां हावड़ा ब्रिज है दरअसल वहां कभी पोंटून सेतु था, जिसे विकसित करके हावड़ा ब्रिज बनाया गया। शुरुआत में इसका नाम 'न्यू हावड़ा ब्रिज' था। 14 जून,1965 में बंगला साहित्य के महान कवि, प्रथम एशियाई और प्रथम भारतीय नोबेल पुरष्कार विजेता ‘रवींद्रनाथ टैगोर’ के सम्मान में इसका नाम बदलकर ‘रवीन्द्र सेतु’ कर दिया गया। लेकिन यह आज भी हावड़ा ब्रिज के नाम से ही जाना जाता है।

फिल्मों में भी अपना जादू चलाता है रवीन्द्र सेतु...


साल 1962 में बनी फिल्म चायना टाउन में 1971 में अमर प्रेम में ये पुल दिखाई देता है। ये पुल इतना लोकप्रिय है कि इसी नाम से हावड़ा ब्रिज फिल्म 1958 में बनी। इस फिल्म में गीता दत्त का गाया गीत... मेरा नाम चिन-चिन-चू, चिन-चिन-चू बाबा चिन-चिन-चू रात चांदनी मैं और तू ... काफी लोकप्रिय हुआ। 1969 की फिल्‍म 'खामोशी' का एक गाना है, गुलजार का लिखा और किशोर दा का गाया- 'वो शाम कुछ अजीब थी..' में राजेश खन्ना और वहीदा रहमान हावड़ा ब्रिज पर दिखाई देते हैं। देवानंद की तीन देवियां, राजकपूर की राम तेरी गंगा मैली, अंग्रेजी फिल्म सिटी ऑफ जॉय, 2004 में आई मणिरत्नम की युवा, इम्तियाज अली की 2009 की फिल्म लव आजकल, 2012 में अनुराग बासु की बर्फी तो 2014 यशराज के गुंडे में और 2015 में शुजित सरकार की पीकू में हावड़ा ब्रिज दिखाई देता है।

कोलकाता में एक नहीं, दो हावड़ा ब्रिज


कोलकाता की हुगली नदी पर वैसे तो कई पुल बने हैं, पर हावड़ा ब्रिज और दूसरा हावड़ा ब्रिज पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। पहला रवीन्द्र सेतु और दूसरा विद्यासागर सेतु के नाम पर है। आम तौर पर लोग दोनों को ही हावड़ा ब्रिज के नाम से पुकारते है। पुराना ब्रिज हावड़ा ब्रिज के नाम से तो दूसरा नया हावड़ा ब्रिज के नाम से जाना जाता है।

हावड़ा ब्रिज से जुड़ी हैं कई कहानियां

माना जाता है कि हावड़ा ब्रिज की कोई चाभी थी जिसे ब्रिटिश कम्पनी ने भारत को नहीं दिया। पुराने जमाने में इस चाभी से ब्रिज को बड़े समुद्री जहाजों के लिए दो भागों में खोला जाता था। लेकिन इन बातों का कोई प्रमाण नहीं है।
एक और मान्यता के अनुसार हावड़ा ब्रिज के इंजीनियर ने कहा था कि यह पुल 12 बजे नष्ट होगा। हालांकि उन्होनें तारीख या am-pm नहीं बताया था। इसलिए हर दिन दोपहर के 12 बजे और रात के 12 बजे इस पुल को बंद कर दिया जाता है। यह बात भी गलत है।

हुगली नदी पर हावड़ा ब्रिज के अलावा पांच और सेतु हैं:

* विद्यासागर सेतु (दूसरी हुगली ब्रिज)
* विवेकानन्द सेतु
* निवेदिता सेतु
* ईश्वर गुप्ता सेतु
* नसीरपुर रेल ब्रिज (निर्माणाधीन)

मजबूत हावड़ा ब्रिज को है थूक और बीट से खतरा

हावड़ा ब्रिज पर हर रोज एक लाख से भी ज्यादा गाड़ियां गुजरती हैं और तकरीबन दो लाख पैदलयात्री इस पर चलते हैं। इसकी क्षमता 60,000 टन वजन सहने की है। लेकिन बढ़ती जनसंख्या ने ट्रैफिक को इतना बढ़ा दिया कि आज हावड़ा ब्रिज पर हर समय 90,000 टन का वजन रहता है। इसलिए कई ट्रामों और ज्यादा वजनी ट्रकों को दूसरे रास्तों या पुलों पर स्थानांतरित किया जा रहा है। 

पक्षियों द्वारा हावड़ा ब्रिज पर की जाने वाली गन्दगी से कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट काफी परेशान है क्योंकि इससे ब्रिज की रासायनिक क्षति हो रही है। इसलिए ट्रस्ट हर साल ब्रिज से पक्षियों की गन्दगी हटाने के लिए पांच लाख का कॉन्ट्रैक्ट देता है। लोगों के पान की पीक की वजह से भी ब्रिज की क्षति हो रही है। इसी वजह से हावड़ा ब्रिज की स्टील पर जंग लग रहा है। इस पूरे ब्रिज को पेंट करने के लिए 26,500 लीटर पेंट की खपत होती है, जिसमें लगभग 65 लाख रूपये खर्च होते हैं। 2006 के शुरुआत में इसकी मरम्मत करवाई गयी थी, जिसमें 8 टन स्टील की खपत हुई थी। इस पूरे प्रक्रिया में 50 लाख रूपये खर्च हुए थे।

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